CJI Suryakant: रोहिंग्या मुद्दे पर सीजेआई सूर्यकांत ने ऐसा क्या कहा? पूर्व जजों और वकीलों की भावनाएं आहत हो गईं; लिखा खुला पत्र...
CJI Suryakant: रोहिंग्या शरणार्थियों पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच की टिप्पणियों से आहत होकर पूर्व न्यायाधीशों और वकीलों ने CJI को खुला पत्र लिखा है. पत्र में बेंच के कथित बयानों पर गहरी चिंता जताई गई है, जिसमें रोहिंग्याओं को कथित तौर पर घुसपैठियों के बराबर बताया गया और उनके मानवीय अधिकारों पर सवाल उठाया गया था. हस्ताक्षरकर्ताओं ने इन टिप्पणियों को संवैधानिक मूल्यों और न्यायपालिका की नैतिक अथॉरिटी के विपरीत बताया है.
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भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत को संबोधित करते हुए पूर्व न्यायाधीशों और वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा एक खुला पत्र यानी ओपन लेटर लिखा गया है. 2 दिसंबर 2025 को रोहिंग्या शरणार्थियों से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई की टिप्पणियों पर इस पत्र में गहरी चिंता व्यक्त की गई है.
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कथित तौर पर सीजेआई ने सुनवाई के दौरान रोहिंग्याओं की कानूनी स्थिति पर सवाल उठाया था. उन्हें “अवैध रूप से प्रवेश करने वाले घुसपैठियों करार दिया गया था. यहां तक कि सुरंग खोदकर अवैध रूप से प्रवेश करने वाले व्यक्तियों से उनकी तुलना की गई थी. याचिका डॉ. रीता मनचंदा द्वारा दायर की गई थी, जिसमें रोहिंग्या शरणार्थियों के हिरासत में गायब होने का आरोप लगाया गया है.
अपमानजनक टिप्पणियां और न्यायिक अधिकार पर सवाल..
पत्र में कहा गया है कि इन टिप्पणियों ने रोहिंग्या शरणार्थियों को अमानवीय बना दिया है जबकि उनके समान मानवता और मानवाधिकार संविधान, भारतीय कानूनों और अंतरराष्ट्रीय कानून द्वारा संरक्षित हैं.
हस्ताक्षरकर्ताओं ने खास तौर पर इस बात पर आपत्ति जताई कि घरेलू गरीबी का हवाला देकर शरणार्थियों के बुनियादी संवैधानिक अधिकारों से इनकार करने का सुझाव दिया गया. पत्र में यह सुझाव दिया गया कि उनपर थर्ड डिग्री उपायों से बचा जाना चाहिए.
पत्र में जोर दिया गया है कि CJI, न्यायपालिका के मुखिया के रूप में न केवल एक कानूनी कार्यवाहक हैं, बल्कि गरीब, वंचित और हाशिए पर पड़े लोगों के अधिकारों के संरक्षक और अंतिम मध्यस्थ भी हैं. उनके शब्द राष्ट्र की अंतरात्मा पर गहरा असर डालते हैं और निचली अदालतों और सरकारी अधिकारियों के लिए एक मिसाल कायम करते हैं.
संविधान और अंतरराष्ट्रीय दायित्व..
पत्र में हस्ताक्षरकर्ताओं ने यह स्पष्ट किया कि रोहिंग्या का दर्जा अवैध अप्रवासियों से गुणात्मक रूप से अलग है क्योंकि वे शरणार्थी हैं. संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें दुनिया में सबसे अधिक सताया गया अल्पसंख्यक बताया है, जो म्यांमार में नरसंहार से भाग रहे हैं.
पत्र का मकसद कोर्ट को यह याद दिलाना है कि भारत में रहने वाला कोई भी व्यक्ति अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षण का हकदार है. सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी (NHRC बनाम अरुणाचल प्रदेश, 1996) यह फैसला दिया है कि स्टेट इंसान, चाहे वह नागरिक हो या कोई और के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए बाध्य है”.
कहा गया कि भारत की एक मजबूत पृष्ठभूमि रही है, जहां तिब्बतियों और श्रीलंकाई लोगों को विशेष दस्तावेज प्रदान करके और 1970-71 में लाखों बांग्लादेशी शरणार्थियों को आश्रय देकर मानवीय सुरक्षा प्रदान की है.
पत्र का निष्कर्ष है कि इस तरह की बयानबाजी न्यायपालिका में जनता के विश्वास को कमजोर करती है और इसलिए CJI से अनुरोध किया जाता है कि वे मानव गरिमा और सभी के लिए न्याय पर आधारित संवैधानिक नैतिकता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की सार्वजनिक रूप से पुष्टि करें.
Edited by k.s thakur...




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