चीन एशिया पर फोड़ने वाला है वॉटर बम, तिब्बत में ताबड़तोड़ मिलिट्री निर्माण, वॉटर टावर को पहुंचा रहा है नुकसान...
China water bomb : भारत ने 2020 में चीन को पूर्वी लद्दाख में जो सबक सिखाया उससे वो अबी तक उबर नहीं सका है. बपातचीत की मेच पर तो आ गया लेकिन अपनी तैनाकी को तिब्बत में जारी रखे हुए है. कम समय में तेजी से LAC तक पहुंचने के चक्कर में पर्यावरण सुरक्षा को नजरअंदाज कर रहा है.
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चीन तिब्बत में अपनी मनमानी थोपने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। चीन तिब्बत की संस्कृति और भाषा को मिटाने पर तुला हुआ है. सेना की तैनाती भी लगातार बढ़ रही है और इसके लिए नए-नए निर्माण जारी हैं.
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यह सब सिर्फ तिब्बत ही नहीं, बल्कि दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए भी खतरे की घंटी है. तिब्बत को एशिया का वॉटर टावर भी कहा जाता है. इस पूरे क्षेत्र में पोलर रीजन के बाद सबसे ज्यादा ग्लेशियर हैं. इन ग्लेशियर से 10 बड़ी नदियां निकलती हैं और इससे एशिया के 2 बिलियन लोगों को पानी मिलता है.
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लेकिन भविष्य में यह पानी की किल्लत हो सकती है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है चीन का तिब्बत में ताबड़तोड़ निर्माण, जिससे पर्यावरण को खतरा पहुंच रहा है. इंस्टिट्यूट फॉर सिक्योरिटी एंड डेवलपमेंट पॉलिसी थिंक टैंक के मुताबिक, पिछले 30 साल में ज़मीन का तापमान सालाना 0.1 से 0.5°C के बीच बढ़ा है. ताबड़तोड़ निर्माण से ग्लेशियर को नुकसान पहुंच रहा है, जो कि आने वाले दिनों में पूरे एशिया के लिए खतरे का सबब बन सकता है.
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मिलिट्री निर्माण से पर्यावरण को खतरा..
वेस्टर्न थिएटर कमांड के तहत 5 मिलिट्री सब डिस्ट्रिक्ट न्गारी, शिगात्से, ल्हासा, न्यिंगची और चामडो शामिल हैं. निर्माण की बात करें तो गोंगगर एयरपोर्ट पर दूसरा रनवे बनाया गया, शिगात्से एयरपोर्ट पर एयरबोर्न अर्ली वॉर्निंग एयरक्राफ्ट के लिए नए हैंगर, यूएवी ऑपरेशन के लिए अतिरिक्त रनवे जिनसे J-16 लड़ाकू विमान और Y-20 भारी ट्रांसपोर्ट ऑपरेट कर सकते हैं.
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इसके अलावा एडवांस लैंडिंग ग्राउंड (ALG) को 3,000 से 5,500 मीटर की ऊँचाई पर बनाए गए हैं. तिब्बत में ट्रांसपोर्टेशन इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने के लिए साल 2024 में ही 80 बिलियन युआन आवंटित किए गए हैं,जिसमें 10 नए एयरपोर्ट और 47 ALG तैयार किए जाने हैं.
इसके अलावा 2006 में किंघई-तिब्बत रेलवे के पूरा होने के बाद से रेलवे नेटवर्क काफी तेजी से बढ़ा है. नाम तो दिया जाता है कि यह सब तिब्बत के लोगों के लिए है, लेकिन सच्चाई यह है कि यह मिलिट्री के इस्तेमाल को ध्यान में रखकर ही बनाए जा रहे हैं, ताकि भारत के साथ LAC पर कोई तनाव की स्थिति में चीन तेजी से अपना मूवमेंट कर सके।
सूत्रों के मुताबिक, रेल नेटवर्क के बनाए गए 9 बड़े स्टेशन पूरे एक इंफेंट्री डिविजन को उनके उपकरणों के साथ ले जाने की क्षमता रखते हैं. इसके अलावा तिब्बत में मिलिट्री ऑपरेशन के लिए रोड नेटवर्क को भी बड़ी तेजी से बढ़ाया गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, 15,000 किलोमीटर से ज्यादा लंबी ऑलवेदर रोड तिब्बत में तैयार की गई है, जो भारी सैन्य वाहनों और उपकरणों के ले जाने में सक्षम है. साल 2015 और 2023 के बीच ही लगभग 4,200 किलोमीटर सड़कें जोड़ी गई हैं. इस पूरे रोड नेटवर्क में 124 बड़े क्लास 70 ब्रिज शामिल हैं, यानी वे ब्रिज जो 70 टन तक के भार को आसानी से सहन कर सकते हैं.
भारत-चीन के बीच विवाद के बाद से तैनाती बढ़ी..
तिब्बत में चीनी पीएलए की मौजूदगी 1951 से ही बनी हुई है. लेकिन 21वीं शताब्दी में चीन ने ना सिर्फ इसकी संख्या को बढ़ाया है. रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे तिब्बत में 70,000 से 120,000 सैनिकों की तैनाती लगातार बनी हुई है.
अकेले तिब्बत मिलिट्री डिस्ट्रिक्ट में ही 40,000 से लेकर 50,000 सैनिक मौजूद हैं. यह फोर्स चीन वेस्टर्न थिएटर कमांड के मिलिट्री इंस्टॉलेशन, फॉर्वर्ड ऑपरेटिंग बेस और LAC से जोड़ने वाली प्रमुख ट्रांसपोर्टेशन रूट पर तैनात है.
भारत और चीन के बीच भले ही LAC विवाद को सुलझाने की कवायद तेज है, लेकिन सबसे बड़ी चिंता है चीन पर भरोसा, जो कि करना मुश्किल है. चीन तो ब्रह्मपुत्र नदीं पर तिब्बत में बांध बनाकर भी एक वॉटर बम फोड़ने की फिराक में है.
इस वॉटर बम का तो इलाज भारत के पास है लेकिन जो तिब्बत में ताबड़तोड़ निर्माण कर के वो पूरे एशिया के लिए संकट पैदा करने की तैयारी में है उसका तोड़ किसी के पास नहीं है.
Edited by k.s thakur...







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