जम्मू-कश्मीर में मजार-ए-शुहदा पर गरमाई सियासत, दीवार फांदकर पहुंचे सीएम, बोले- ‘हम उनके गुलाम नहीं’...
13 July Kashmir Shaheed Diwas: कश्मीर में मजार-ए-शुहदा पर जाने को लेकर पिछले दो दिनों से जमकर सियासत हो रही है। दरअसल सीएम वहां जाना चाहते थे लेकिन एलजी ने उनके घर के बाहर पुलिस की सख्ती बढ़ा दी। इसके बाद सीएम दीवार फांदकर और बैरिकेडस तोड़कर वहां पहुंचे और नमाज अदा की।
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Omar Abdullah Martyrs Graveyard: जम्मू-कश्मीर में आज शहीदों के कब्रिस्तान जाने को लेकर जमकर सियासत हुई। सीएम उमर अब्दुल्ला आज पार्टी नेताओं और पिता फारूक अब्दुल्ला के साथ श्रीनगर में मजार-ए-शुहदा नक्शबान साहब पहुंचे और नमाज अदा की।
हालांकि यहां पहुंचने के लिए सीएम उमर अब्दुल्ला को काफी मशक्कत करनी पड़ी। वे चार बैरिकेडस तोड़कर और दीवार फांदकर मजार-ए-शुहदा पहुंचे और नमाज अदा की।
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एलजी पर साधा निशाना..
मामले में सामूहिक नमाज अदा करने के बाद सीएम उमर अब्दुल्ला ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि निर्वाचित मुख्यमंत्री को 13 जुलाई के शहीदों के कब्रिस्तान जाने से रोका गया। इस दौरान एलजी पर भी निशाना साधा।
उमर ने कहाए यह बहुत दुखद है कि जिन लोगों ने कहा था कि उनकी जिम्मेदारी केवल सुरक्षा और कानून-व्यवस्था है, उनके निर्देश पर हमें कल सामूहिक नमाज के लिए यहां आने की अनुमति नहीं दी गई।
उमर ने आगे कहा, जब मैंने कल उन्हें बताया कि मैं यहां आना चाहता हूं तो उन्होंने तुरंत मेरे घर के सामने एक सुरक्षा गाड़ी खड़ी कर दी और मुझे गेट नहीं खोलने दिया।
आज मैंने उन्हें सूचित नहीं किया और सीधे नौहटा की ओर चला गया, लेकिन उनका रवैया देखिए, पुलिस और सीआरपीएफ ने हमें तीन जगहों पर रोकने की कोशिश की। यहां तक कि पुलिस ने हमें डराने-धमकाने की भी कोशिश की।
हम अपने लोगों के गुलाम हैं- उमर अब्दुल्ला
किसी का नाम लिए बिना, उमर अब्दुल्ला ने कहा, वे दावा करते हैं कि यह एक आजाद देश है, लेकिन कभी-कभी उन्हें लगता है कि हम उनके गुलाम हैं। हम उन्हें बताना चाहते हैं कि हम उनके गुलाम नहीं हैं, हम अपने लोगों के गुलाम हैं।
उमर अब्दुल्ला ने कहा कि, वे आखिरकार कब्रिस्तान पहुंचे और सामूहिक नमाज अदा की। यह हमारी जगह है, ये हमारे शहीद हैं और जब भी हम चाहेंगे, हम यहां आएंगे। चाहे वह 13 जुलाई हो, 12 जुलाई हो या 14 जुलाई, हमें कोई नहीं रोक सकता।
जानें क्या है मजार-ए-शुहदा
कश्मीर की क्षेत्रीय राजनीति में शहीद दिवस का गहरा ऐतिहासिक महत्व है। यह दिवस 1931 में डोगरा शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान शहीद हुए 22 नागरिकों के बलिदान की याद में मनाया जाता है।
2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से पहले, इस दिन को आधिकारिक तौर पर राजकीय समारोहों और सार्वजनिक अवकाश के साथ मान्यता प्राप्त थी।
हालांकि तब से उपराज्यपाल के नेतृत्व वाले प्रशासन ने इस अवकाश को रद्द कर दिया है और इस विशेष दिन पर राजनीतिक नेताओं के लिए कब्रिस्तान में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया है।
नेकां, पीडीपी और अन्य के शीर्ष नेताओं सहित कई राजनीतिक हस्तियों को कल श्रीनगर शहर में स्थित कब्रिस्तान में जाने से रोकने के लिए नजरबंद कर दिया गया था।
Edited by k.s thakur...





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