भारत में बुलेट ट्रेन को क्यों नहीं मिल रही रफ्तार? वजह है चीन, कहां अटका काम...
Indian Railways Bullet Train Project: बुलेट ट्रेन में सफर का सपना क्या होगा साकार? चीन बुलेट ट्रेन प्राजेक्ट में किस तरह बना रोड़ा, जानने के लिए पढ़िए आगे...
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बुलेट ट्रेन में सफर का सपना पूरा करने के लिए आपको लंबा इंतजार करना पड़ सकता है. दरअसल, भारत की पहले हाई-स्पीड बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट पर एक बड़ा संकट मंडराता नजर आ रहा है. इस संकट की वजह बना हुआ है चीन. इस एंबिशियस प्रोजेक्ट के लिए जरूरी तीन विशाल टनल बोरिंग मशीनें (TBM) चीन के एक बंदरगाह पर अटक गई हैं.
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इससे देश की सबसे चर्चित रेल प्रोजेक्ट में देरी का खतरा बढ़ गया है. जमीन के नीचे सुरंग बनाने में इस्तेमाल होने वाली ये टीबीएम मशीनें जर्मन कंपनी हेरेनक्नेच्ट से ऑर्डर की गई थीं. लेकिन इन्हें चीन के ग्वांगझोउ में कंपनी की फैक्ट्री में बनाया गया.
इन मशीनों का पहला हिस्सा अक्टूबर 2024 तक भारत पहुंचने वाला था, लेकिन चीनी अधिकारियों ने अभी तक इन्हें मंजूरी नहीं दी. हैरानी की बात यह है कि टीबीएम मशीनों को किस वजह से रोका गया है, इसका कोई आधिकारिक कारण भी नहीं बताया गया है. यह रहस्यमयी देरी अब इस प्रोजेक्ट के लिए सिरदर्द बन रही है.
शायद यही वजह है कि इस मुद्दे ने अब कूटनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है. रेल मंत्रालय ने इस मामले को विदेश मंत्रालय के सामने उठाया है. सूत्रों की मानें तो इन मशीनों को रिलीज कराने के लिए भारत ने चीन के साथ उच्च स्तरीय बातचीत शुरू कर दी है. इन मशीनों के साथ प्रोजेक्ट के लिए बेहद महत्वपूर्ण कुछ अन्य जरूरी उपकरण भी फंसे हैं.
इन जगहों पर इस्तेमाल होनी थी टीबीएम मशीन
उल्लेखनीय है कि नेशनल हाई स्पीड रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड (NHSRCL) 1.08 लाख करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट को संभाल रहा है. एनएचएसआरसीएल ने तीन टीबीएम मशीनों को तैनात करने की योजना बनाई थी.
उल्लेखनीय है कि नेशनल हाई स्पीड रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड (NHSRCL) 1.08 लाख करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट को संभाल रहा है. एनएचएसआरसीएल ने तीन टीबीएम मशीनों को तैनात करने की योजना बनाई थी.
टीबीएम-1 और टीबीएम-2 को सावली (घंसोली)-विक्रोली और विक्रोली-बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स (बीकेसी) के बीच सुरंग बनाने के लिए इस्तेमाल करना था, जबकि टीबीएम-3 को सावली से विक्रोली के लिए पहले ही आ जाना था. लेकिन अब तक कोई मशीन भारत नहीं पहुंची हैं. सूत्रों का कहना है कि प्रोजेक्ट की अंतिम समय सीमा में अभी तक कोई बदलाव नहीं किया गया है.
क्या होगा टीबीएम में देरी का असर?
हालांकि, अगर टीबीएम मशीनों की तैनाती में देरी होती रही, तो खासकर बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स से शिल्फाटा तक 21 किलोमीटर लंबी सुरंग के निर्माण पर असर पड़ सकता है. इस हिस्से में 7 किलोमीटर लंबे थाने क्रीक के नीचे समुद्र के भीतर सुरंग भी शामिल है, जो इस प्रोजेक्ट का सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा है.
हालांकि, अगर टीबीएम मशीनों की तैनाती में देरी होती रही, तो खासकर बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स से शिल्फाटा तक 21 किलोमीटर लंबी सुरंग के निर्माण पर असर पड़ सकता है. इस हिस्से में 7 किलोमीटर लंबे थाने क्रीक के नीचे समुद्र के भीतर सुरंग भी शामिल है, जो इस प्रोजेक्ट का सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा है.
दिलचस्प बात यह है कि मुंबई मेट्रो और कोस्टल रोड प्रोजेक्ट के लिए भी टीबीएम मशीनें चीन से आई थीं, लेकिन वह 2020 के गलवान संघर्ष से पहले की बात थी. अब बदले हुए कूटनीतिक माहौल में यह रुकावट कई सवाल खड़े कर रही है.
क्या यह देरी तकनीकी है या इसके पीछे कोई और वजह? क्या भारत की बुलेट ट्रेन का सपना समय पर पूरा होगा? ये सवाल हर किसी के मन में घूमना शुरू हो गए हैं.
Edited by k.s thakur...




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