लखनऊ हत्याकांड: उधारी के पैसों से जनाजे का 'सफर'... संभल में चंदा जुटाकर दफनाए गए अरशद की मां और चारों बहनों के शव...

लखनऊ हत्याकांड: उधारी के पैसों से जनाजे का 'सफर'... संभल में चंदा जुटाकर दफनाए गए अरशद की मां और चारों बहनों के शव...


संभल। लखनऊ हत्याकांड में मौत की नींद सोने वाली अस्मा और उनकी चार बेटियों का दफीना संभल स्थित मायके में शुक्रवार को हुआ। दफीना हुआ ये बड़ी बात नहीं है, लेकिन किन परिस्थितियों में हुआ, यह किसी दास्तां से कम नहीं।

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गरीबी रेखा में जीवन जीने वाले मायके पक्ष के लोगों ने पहले उधार के पैसों से लखनऊ में हुए घटनास्थल तक का सफर तय किया और फिर वहां से शवों को घर लाकर दफीने के लिए चंदा जुटाया। जिसे भी इसके बारे में पता चला, वो उनकी किस्मत को काेसते नजर आया।

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अरशद के मामा के घरवाले गरीब हैं..

दरअसल, संभल के सरायतरीन में रिक्शा चलाने वाले फकरे आलम का परिवार रहता है। फकरे आलम चार साल पहले गुजर चुके हैं। अब उनके दो पुत्र और चार बेटियां हैं। इनमें सबसे बड़ी बेटी अस्मा का निकाह 2000 में बदायूं में चौधरी सराय के बदर अली के साथ किया था। बदायूं में बदर अली का अपने परिवार के लोगों से विवाद हुआ और दूरियां बन गईं।
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इसके बाद बदर अली अपनी पत्नी अस्मा, बेटे अरशद और चार बेटियों अल्शिया, रहमीन, अक्सा और आलिया को ले जाकर आगरा के इस्लाम नगर में में रहने लगे। बदर खां की न सिर्फ अपने परिवार के लोगों से बिगड़ी, बल्कि वह ससुराल पक्ष के लोगों से भी विवाद रखता था। यही वजह थी कि वर्ष 2018 के बाद अस्मा कभी अपने मायके में नहीं आई। जहां तक की चार साल पहले हुई पिता की मौत में शामिल नहीं हुई। क्योंकि जब-जब वह मायके आने के लिए कहती, तभी पति बदर अली विवाद करता था, इसलिए मायके वालों का भी वास्ता न के बराबर रहा।

समय गुजरता गया और जिंदगी का पहिया का भी चलता गया। इसी बीच बदर अली के परिवार को नजर लगी और पल में सबकुछ खत्म हो गया। खत्म करने वाले कोई और नहीं, बल्कि बदर खां और उसका बेटा ही निकला। ये दोनों 31 दिसंबर की रात को लखनऊ के एक होटल में नए साल की पार्टी बनाने का बहाकर लेकर अस्मा और चार बेटियों को ले गए। वहां पर एक जनवरी को अस्मा और चारों बेटियों की निर्मम तरीके से हत्या कर दी।

आरोपी अरशद और बदर गिरफ्तार..

घटना के बाद हत्यारोपित पुत्र अरशद को पुलिसने पकड़ लिया, जबकि पति गायब हो गया। फिर पोस्टमार्टम हुआ। इसी बीच पुलिस ने अस्मा के भाई आलम को फोन कर प्रकरण की जानकारी दी। हत्याकांड की खबर सुनकर मायके में भी कोहराम मच गया। इस कोहराम के बीच आलम के सामने एक सवाल पहाड़ की तरफ खड़ा हुआ कि आखिर लखनऊ कैसे पहुंचेंगे, क्योंकि सफर करने के लिए पैसे भी नहीं हैं।

उस स्थिति में आलम ने अपने चचेरे भाई से पैसे उधार लिए और फिर वह गाड़ी बुक कर लखनऊ पहुंच गया। सोचा था कि घटना की जानकारी मिलने पर बदर खां से विवाद मानने वाले उनके घर के लोग इंसानियत के नाते लखनऊ में शवों को लेने के लिए आएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वह न तो लखनऊ पहुंचे और न ही घटना के बारे में जानकारी जुटाई।

पांच शवों को एक साथ किया गया दफन..

इसके बाद मायके वाले ही शव लेकर संभल आए और यहां पर मोहल्ले-बस्ती वालों से चंदा जुटाकर पांचों के शवों का दफीना किया गया। मायके वाला घर बहुत छोटा होने की स्थिति में शवों को आसपास के घर में रखा गया।

शुक्रवार की सुबह में नौ बजे एक साथ पांचों के जनाजे दफीना के लिए उठे। इस दौरान सर्दी का सन्नाटा चीख-पुकार की आवाजों से टूट गया। पुलिस सुरक्षा के बीच सभी शवों को दफन किया गया। गलियों में सन्नाटा हो गया। जब लखनऊ से शव संभल में पहुंचे तो शवों के साथ लखनऊ के दो पुलिस कर्मी भी साथ में आए थे।

जानकारी मिलने पर स्थानीय थाने की पुलिस भी सराय तरीन में पहुंच गई। सुरक्षा व्यवस्था के बीच में पांचों शवों को सुपुर्द-ए-खाक किया गया। जब पांच जनाजे के साथ उठे तो यहां के हर व्यक्ति की आंखों में आंसू निकल पड़े। अधिकांश लोग आस्मा के बारे में चर्चा कर रहे थे। आसपास के लोग कह रहे थे कि बहुत समय से मायके नहीं आई थी, लेकिन ये किसी को नहीं पता था कि कभी आएगी तो इस तरह देखने को मिलेगा। मायके वालों की आर्थिक स्थिति के बारे में भी चर्चा कर रहे थे।

अरशद और बदर को फांसी होनी चाहिए- परिवार..

अस्मा व उनकी चार बेटियों को मारने वाले पति बदर खां व पुत्र अरशद को फांसी की सजा होनी चाहिए। यह मांग मायके पक्ष के लोग उठा रहे हैं। अस्मा के भाई आलम का कहना है कि उनका बदर खां व अरशद से कोई वास्ता नहीं है। चचेरे भाई दानिश का कहना है कि यह रिश्तों का खून है। मासूम बेटियों को भी नहीं बख्शा गया है। ऐसे हत्यारोपितों को समाज में रहने का कोई अधिकार नहीं है, इसलिए इन्हें फांसी की सजा होनी चाहिए।

संभल के माहौल को देखकर सुबह में ही दफना दिए पांचों शव..

शहर का माहौन इन दिनों संवेदनशील चल रहा है। हर जगह पर पुलिस फोर्स लगी हुई है। बहुत ज्यादा संख्या में लोगों को भी नहीं जुटने दिया जा रहा है। इन सभी स्थितियों को देखते हुए मायके वालों ने सुबह में सर्दी होने के बाद भी शवों को सुपुर्द-ए-खाक कर दिया। फिर दोपहर में जुमे की नमाज भी थी। अगर, जुमे की नमाज के बाद शव दफनाते तो फिर भारी संख्या में भीड़ जुटती, इसलिए सुबह के समय पर ही शव दफनाने का फैसला लिया गया।





Edited by k.s thakur...






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