POK Protest : हसीना, ओली का अंजाम देख घबराए शरीफ, पाकिस्तानी फौज पर टूट पड़े लोग, तो POK में गिड़गिड़ाने लगे...
शहबाज शरीफ पाकिस्तान में POK समेत कई शहरों में हिंसक प्रदर्शन और राजनीतिक संकट से जूझ रहे हैं, जनता सरकार के फैसलों से नाराज है, कुर्सी बचाना मुश्किल हो सकता है.
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फिलहाल शहबाज शरीफ कोशिश कर रहे हैं कि जनता को शांत किया जाए, प्रदर्शनकारियों से बातचीत हो और किसी तरह का राजनीतिक संकट टाला जाए. लेकिन जमीन पर हालात लगातार बदल रहे हैं और पाकिस्तान की सरकार के लिए चुनौती बड़ी है.
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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ इन दिनों काफी तनाव में हैं. वजह साफ है. हाल ही में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) में हुए प्रदर्शन ने देश की राजनीति को हिला कर रख दिया है.
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जिस तरह शेख हसीना बांग्लादेश में और केपी ओली नेपाल में जनता के आगे सरेंडर कर गए और कुर्सी छोड़ने को मजबूर हुए, अब वही आलम पाकिस्तान में भी दिखाई देने लगा है. बुधवार और गुरुवार की रात पाकिस्तान के कई शहरों में प्रदर्शन हुए.
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इस समय लाहौर, कराची, इस्लामाबाद, पेशावर और मुल्की जिलों में लोग सड़कों पर उतर आए हैं. प्रदर्शनकारी शहबाज शरीफ और उनकी सरकार के खिलाफ नारे लगा रहे हैं. ऐसा लग रहा है जैसे पूरी जनता उनके फैसलों से खफा हो चुकी है. पीओके में तो लोग खुलेआम पाकिस्तान की फौज पर टूट पड़े हैं.
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प्रदर्शन की शुरूआत पीओके में हुई. यहां अवामी एक्शन कमेटी ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया. मुजफ्फराबाद और रावलकोट में प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए और कई सरकारी इमारतों के बाहर नारेबाजी की. शहबाज शरीफ ने पहले तो सेना को मोर्चे पर लगाया. गोलियां चलवाई.
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15 से ज्यादा लोग मारे गए. इसके बाद जब जनता ने मोर्चा संभाला और सेना का कत्लेआम करने लगी तो शहबाज शरीफ की हालत खराब हो गई. तुरंत ही उन्होंने सरेंडर कर दिया और प्रदर्शनकारियों को बातचीत का ऑफर देने लगे. कहने लगे, सरकार हमेशा अपने कश्मीरी भाइयों की समस्याओं को हल करने के लिए तैयार है. तुरंत राहत सहायता भेजी जा रही है.
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शहबाज शरीफ ने कहा कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन संविधानिक और लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन कोई भी ऐसा कदम न उठाए जिससे आम लोगों की जिंदगी प्रभावित हो. बावजूद इसके, प्रदर्शन हिंसक हो गए. कम से कम 12 लोग और तीन पुलिसकर्मी मारे गए. लोगों के गुस्से का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि 172 पुलिसकर्मी अस्पताल में भर्ती हैं.
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जबकि 50 नागरिक पुलिस की गोलियों से घायल हुए हैं. कमेटी चाहती है कि शरणार्थियों के लिए आरक्षित 12 सीटें खत्म की जाएं और अमीरों के विशेषाधिकार रद्द किए जाएं. लेकिन ये किया गया तो पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फिर जाएगा. क्योंकि इसी की बदौलत वह पीओके में अपनी हुकूमत बचाए है.
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पहले फोर्स भेजी, अब मंत्री..
शहबाज शरीफ ने स्थिति को देखते हुए बातचीत की टीम को तुरंत मुजफ्फराबाद भेजने का निर्देश दिया. इसमें केंद्रीय मंत्री सरदार यूसुफ, अहसान इकबाल, सीनेटर राना सनाउल्लाह, पीओके पूर्व राष्ट्रपति मसूद खान और कमर जमान कैरा शामिल हैं.
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शहबाज शरीफ ने कहा कि बातचीत की मॉनिटरिंग वे खुद करेंगे. भरोसा देंगे कि सभी मुद्दों का शांतिपूर्वक समाधान निकल जाए. उन्होंने प्रर्दशन कर रहे लोगों से पुलिस पर हमला न करने की अपील की.
टेंशन सिर्फ पीओके में नहीं..
शहबाज शरीफ की चिंता अब सिर्फ पीओके तक सीमित नहीं है. पाकिस्तान के भीतर भी विरोध तेज हो रहा है. लाहौर में लोग सड़कों पर हैं, कराची में ट्रेड यूनियन और राजनीतिक समूह प्रदर्शन कर रहे हैं, और इस्लामाबाद में सरकार के खिलाफ नारे लग रहे हैं. प्रदर्शनकारी कई मुद्दों पर नाराज हैं – महंगाई, बेरोजगारी, सरकारी भ्रष्टाचार और प्रशासन की अनियमितताएं, उन्हें सड़क पर उतरने के लिए मजबूर कर रही हैं.
सरकार की मुश्किल यही है कि जनता के गुस्से को शांत करना इतना आसान नहीं. अगर प्रदर्शनकारी हिंसक हुए तो स्थिति और बिगड़ सकती है. इस समय प्रशासन ने पुलिस को अलर्ट पर रखा है और कई इलाकों में प्रदर्शन को नियंत्रित करने के लिए बल तैनात किया गया है.
प्रदर्शन लंबा खिंचा तो मुश्किल..
विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिति नाज़ुक है. शेख हसीना और केपी ओली की तरह, अगर प्रदर्शन लंबे समय तक चले और सरकार की नीतियों के खिलाफ जनता सड़कों पर बनी रहे, तो शहबाज शरीफ के लिए कुर्सी बचाना मुश्किल हो सकता है.
इस समय सरकार की रणनीति यही है कि बातचीत और सहमति से प्रदर्शन को शांत किया जाए. प्रधानमंत्री ने कहा कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों को संयम से काम करना चाहिए. उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी तरह की कठोरता प्रदर्शनकारियों के प्रति न दिखाई जाए और जनता की भावनाओं का सम्मान किया जाए.
क्या प्रेशर झेल पाएंगे शहबाज..
अब सवाल यह है कि पाकिस्तान की सरकार कितने समय तक इस दबाव को झेल पाएगी. प्रदर्शन देश के कई हिस्सों में फैल चुके हैं. जनता की नाराज़गी बढ़ रही है और सोशल मीडिया पर भी विरोध तेज है. शहबाज शरीफ के लिए चुनौती यही है कि वे प्रदर्शनकारियों से बातचीत के ज़रिए समाधान निकालें और आम जनता का भरोसा बहाल करें.
अगर ऐसा नहीं हुआ, तो पाकिस्तान में राजनीतिक संकट गहराने वाला है. इस पूरी स्थिति को देखते हुए स्पष्ट है कि शेख हसीना और केपी ओली का अनुभव पाकिस्तान के लिए चेतावनी बन गया है. सरकार को स्थिति को गंभीरता से लेना होगा, नहीं तो देश में जनता और प्रशासन के बीच तनाव बढ़ सकता है.
Edited by k.s thakur...












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