Andaman Volcano Erupts : 20 साल बाद क्यों फटा अंडमान का ज्वालामुखी? 150KM दूर तक फैला तबाही वाला मंजर...

Andaman Volcano Erupts : 20 साल बाद क्यों फटा अंडमान का ज्वालामुखी? 150KM दूर तक फैला तबाही वाला मंजर...

Andaman Volcano Erupts: अंडमान के बाराटांग में 20 साल बाद भारत का इकलौता मिट्टी का ज्वालामुखी फट पड़ा. धमाके से 1000 वर्गमीटर क्षेत्र में कीचड़ फैल गया. इस घटना ने वैज्ञानिक को चौंका दिया है. पर्यटकों की आवाजाही रोकी गई.
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अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का भारत का इकलौता मिट्टी का ज्वालामुखी (Mud Volcano) दो दशकों से अधिक समय तक शांत रहने के बाद अचानक फट पड़ा. 
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2 अक्टूबर को उत्तरी और मध्य अंडमान जिले के बाराटांग स्थित इस ज्वालामुखी ने कर्णभेदी धमाके के साथ विस्फोट किया. इसकी आवाज दूर-दराज के इलाकों तक सुनाई दी.
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स्थानीय अधिकारियों के मुताबिक इस ज्वालामुखी के फटने के बाद करीब तीन से चार मीटर ऊंचा मिट्टी का ढेर बन गया है. जो लगभग 1000 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैल गया. लगातार कीचड़ और गैस निकलने के चलते एहतियात के तौर पर वहां पर्यटकों की आवाजाही पूरी तरह रोक दी गई है.
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वैज्ञानिकों के लिए नई चुनौती..
विशेषज्ञों का कहना है कि मिट्टी का ज्वालामुखी धरती के अंदर सड़ रहे जैविक पदार्थों से उत्पन्न गैसों के दबाव से बनता है. ये गैसें जब बाहर निकलती हैं तो मिट्टी और पानी के साथ सतह पर पहुंचती हैं.
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इससे बुलबुले बनते हैं और गड्ढेनुमा संरचना तैयार होती है. यह नजारा देखने लायक होता है, लेकिन इस बार का विस्फोट वैज्ञानिकों के लिए भी चौंकाने वाला साबित हुआ है.
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आखिरी बार 2005 में फटा था..
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि इतना बड़ा विस्फोट इससे पहले 2005 में हुआ था. उस समय भी मिट्टी और गैस का उफान कई दिनों तक चलता रहा था. इस बार भी धमाके जैसी आवाज सुनकर स्थानीय लोग घबरा गए और तुरंत पुलिस व वन विभाग को सूचना दी.

पर्यटन स्थल पर रोक..
बाराटांग का यह इलाका पोर्ट ब्लेयर से करीब 150 किलोमीटर दूर है और एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल माना जाता है. पर्यटक यहां खासतौर पर भारत के इस इकलौते मिट्टी के ज्वालामुखी को देखने आते हैं. लेकिन विस्फोट के बाद सुरक्षा कारणों से यहां पर्यटन गतिविधियां अस्थायी रूप से बंद कर दी गई हैं.

1000 वर्गमीटर में फैली मिट्टी..
अधिकारियों ने बताया कि ज्वालामुखी फटने के बाद चारों ओर गाढ़ी मिट्टी और कीचड़ फैल गया है. कई मीटर तक जमीन पर नई परत जम गई है. अभी भी नीचे से बुलबुले और गैस निकल रहे हैं. विशेषज्ञ लगातार स्थिति पर नजर रख रहे हैं ताकि किसी संभावित खतरे से निपटा जा सके.

पर्यावरणीय और वैज्ञानिक महत्व..
यह ज्वालामुखी न सिर्फ पर्यटन के लिहाज से बल्कि भूवैज्ञानिक और पर्यावरणीय अध्ययन के लिए भी बेहद अहम है. विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी गतिविधियां धरती की गहराइयों में हो रहे बदलावों को समझने का एक महत्वपूर्ण संकेत देती हैं.







Edited by k.s thakur...

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