NISAR: 2400 किलो वजन, 12 दिन में पूरी पृथ्वी का डेटा, ISRO-NASA क्यों लॉन्च कर रहे ₹13000 करोड़ का सैटेलाइट?
ISRO GSLV-F16 NISAR Satellite Launch: 30 जुलाई 2025 को श्रीहरिकोटा से एक ऐतिहासिक सैटेलाइट लॉन्च होने जा रहा है. इस मिशन का नाम है- NISAR यानी NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar.
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यह सैटेलाइट करीब ₹13,000 करोड़ ($1.5 बिलियन) की लागत से तैयार हुआ है. NISAR हमें धरती की सतह का ऐसा डेटा देगा, जो पहले कभी इतने विस्तार और सटीकता के साथ नहीं मिला.
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यह सैटेलाइट न सिर्फ भारत-अमेरिका के अंतरिक्ष संबंधों में नया अध्याय जोड़ेगा, बल्कि पूरी धरती की निगरानी के तौर-तरीकों को भी बदल देगा. आइए, जानते हैं ISRO और NASA के इस साझा, महत्वाकांक्षी मिशन के बारे में.
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NISAR दुनिया का पहला ऐसा सैटेलाइट होगा जो दो अलग-अलग रडार फ्रीक्वेंसी पर एक साथ काम करेगा. यह NASA के L-बैंड रडार और ISRO के S-बैंड रडार की फ्रीक्वेंसी पर वर्क करेगा. 2,392 किलोग्राम वजनी यह सैटेलाइट GSLV-F16 रॉकेट के ज़रिए लॉन्च किया जाएगा और 743 किलोमीटर ऊंचे सन-सिंक्रोनस ऑर्बिट में स्थापित होगा.
इस ऑर्बिट की खासियत है कि यह लगातार एक जैसी रोशनी वाली परिस्थितियों में डेटा कैप्चर करता है. मतलब, हर 12 दिन में पूरी पृथ्वी की सतह की उच्च-रिज़ॉल्यूशन तस्वीरें ली जाएंगी. चाहे दिन हो या रात, बारिश हो या बादल.
NISAR की लागत $1.5 बिलियन है, जो किसी भी अर्थ ऑब्ज़र्वेशन सैटेलाइट मिशन में अब तक की सबसे ज्यादा है. इसकी तकनीकी जटिलता ही इसकी कीमत तय करती है. इसमें 12 मीटर लंबा मेष एंटीना है, जो अब तक के सबसे बड़े एंटेना में गिना जाता है.
इसमें लगे दोनों रडार एक-दूसरे को बिना डिस्टर्ब किए डेटा कैप्चर कर सकते हैं. इसकी सेंसर तकनीक सेंटीमीटर लेवल तक की हलचल को भी डिटेक्ट कर सकती है, जैसे भूकंप से ज़मीन में आई हल्की दरारें या बर्फ की चादर में बदलाव.
इस मिशन में ISRO की हिस्सेदारी करीब ₹788 करोड़ है. ये पैसा सिर्फ एक सैटेलाइट पर नहीं, बल्कि कई रणनीतिक फायदों पर लगाया गया है. भूकंप, बाढ़, भूस्खलन जैसे हालात की शुरुआती पहचान से जान-माल की रक्षा संभव हो सकेगी. खेतों की नमी और फसल की हालत जानकर सूखा राहत योजनाएं और खाद्यान्न सुरक्षा बेहतर हो सकेगी.
ग्लेशियरों, जंगलों और आर्द्रभूमियों पर डेटा मिलना जलवायु नीति को दिशा देगा. ड्यूल-बैंड रडार जैसी जटिल तकनीक में महारत ISRO को भविष्य की मिशनों में फायदा देगी. इस सैटेलाइट से मिला सारा डेटा पूरी दुनिया के लिए फ्री होगा, जिससे भारत की वैज्ञानिक साख बढ़ेगी.
इस सैटेलाइट में लगे दो रडार का रोल अलग-अलग है: L-बैंड रडार (NASA): यह लंबी तरंगों वाला रडार ज़मीन, जंगल, बर्फ और मिट्टी के भीतर तक की जानकारी दे सकता है. वहीं S-बैंड रडार (ISRO): यह सतह की बारीक चीज़ों को पहचानता है, जैसे फसल की संरचना, बर्फ की परत, मिट्टी की दरारें. इन दोनों को मिलाकर NISAR हर 12 दिन में पूरी धरती की 5 से 10 मीटर की रिज़ॉल्यूशन वाली तस्वीरें खींचेगा, जिसमें 242 किलोमीटर तक की चौड़ाई कवर होगी.
NISAR महज एक साइंटिफिक मिशन नहीं है, बल्कि यह धरती पर हो रहे बड़े बदलावों की रियल टाइम निगरानी की ताकत देगा. यह भूकंप, ज्वालामुखी, भूस्खलन की बारीक हलचल पकड़ सकेगा. ग्लेशियर और आइस शीट की गति और पिघलाव को ट्रैक करेगा.
जंगलों की कटाई, फसल वृद्धि और वनस्पति बदलावों का डेटा देगा. मिट्टी की नमी, झीलों और वेटलैंड्स में हो रहे बदलावों की निगरानी करेगा. चक्रवात, बाढ़, सुनामी और जंगल की आग के बाद राहत कार्यों को सटीक जानकारी देगा.
ISRO और NASA का यह जॉइंट मिशन सिर्फ भारत या अमेरिका के लिए नहीं है. इसका डेटा पूरी दुनिया को मिलेगा. इससे क्लाइमेट चेंज से लड़ने की वैश्विक कोशिशों को नई ऊर्जा मिलेगी. सरकारी नीतियों, शहरी विकास, खाद्यान्न सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण और सुरक्षा रणनीतियों में डेटा आधारित फैसले लिए जा सकेंगे.
Edited by k.s thakur...





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