26वें साल में वो हुआ जो किसी ने सोचा भी नहीं था, जब पहली बार कारगिल एयरस्ट्रिप पर उतारा गया C-17 ग्लोबमास्टर...
KARGIL WAR LESSONS LEARNED STORIES: कारगिल की जंग के बाद से ही भारतीय वायुसेना के कई एडवांस लैंडिग ग्राउंड को अपग्रेड किया जा रहा है. लद्दाख के लेह और थौइस ही फाइटर ऑपरेशन को चलाया जा सकता है.
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इसके अलावा स्पेशल ऑपरेशन ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट और हेलिकॉप्टर ऑपरेशन के लिए 2 एडवांस लैंडिंग ग्राउंड दौलत बेग ओल्डी, फुक्चे और एक एयरफील्ड कारगिल में है. न्योमा जो कि पहले एडवांस लैंडिंग ग्राउंड था उसे अपग्रेड कर उसे फाइटर ऑपरेशन के लिए तैयार किया जा चुका है.
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पाकिस्तान ने 1999 में कारगिल में घुसपैठ कर अपनी मंशा जाहिर कर दी थी. चीन ने 2020 में पूर्वी लद्दाख में उसी तरह की हरकत करने की कोशिश की थी. कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को मजा चखाया और 2020 में चीन को मौका ही नहीं दिया.
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वायुसेना ने अपनी ट्रांसपोर्ट फ्लीट की ताकत दिखाई. कम समय में तेजी से किए गए सैन्य डिप्लॉयमेंट ने चीन को बैकफुट पर डाल दिया. अब कारगिल के चुनौतीपूर्ण एयरस्ट्रिप पर C-17 ग्लोबमास्टर की ट्रायल लैंडिंग से नया कीर्तिमान बना दिया.
इसी साल फरवरी में भारी भरकम मालवाहक विमान C-17 आसानी से कारगिल एयरस्ट्रिप पर लैंड कर सकता है. इससे पहले जनवरी 2024 को भारतीय वायुसेना के टैक्टिकल ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट ने कारगिल एयरस्ट्रिप पर नाइट लैंडिंग को अंजाम देकर सबके होश उड़ा दिए. LoC के करीब वायुसेना के गरुड़ कमांडो ने पूरी ड्रिल को अंजाम दिया था.
C-17 ग्लोबमास्टर है गेमचेंजर..
भारत टू फ्रंट वार की संभावनाओं के तहत अपनी तैयारियों को तेजी से अमलीजामा पहना चुका है. कम्युनिकेशन और कनेक्टिविटी सबसे प्रमुख हैं. अब तक सड़क मार्ग से जुड़ने वाले कारगिल के एयरबेस पर भी भारी भरकम विमान उतर सकते हैं. और ऐसा इसी साल भारतीय वायुसेना ने कर दिखाया.
जब उनका C-17 ग्लोबमास्टर के लैंडिंग व्हील कारगिल एयरस्ट्रिप पर पड़े. श्रीनगर से लद्दाख को जोड़ने वाली सड़क को ऑलवेदर किए जाने का काम जारी है. जोजिला पर टनल भी जल्दी शुरू होगी. बर्फबारी के दौरान श्रीनगर से कारगिल को जोड़ने वाली नेशनल हाइवे नंबर 1 बंद हो जाती है.
ऐसे समय में सेना की जरूरतों को ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट के जरिए पूरा किया जाता है. भारतीय वायुसेना के एयरक्राफ्ट के जरिए कारगिल एयरस्ट्रिप पर सामान पहुंचाया जाता रहा है. एयर कनेक्टिविटी को बेहतर बनाने के लिए श्रीनगर और लेह के बीच इकलौते कारगिल एयरफील्ड को अब एक्टिव किया जा रहा है.
यहां से एयर ऑपरेशन चलाना काफी चुनौतीपूर्ण है. इस एयरस्ट्रिप से होने वाला टेकऑफ सीधा पीओके की तरफ होता है. जरा भी चूक हुई तो एयरक्राफ्ट सीधा LOC पार कर पीओके के एयर स्पेस में जा सकता है.
C-17 कारगिल लैंडिंग के मायने..
C-17 का कारगिल पहुंचना अपने आप में ही बेहद खास है. इससे सेना की मूवमेंट और लॉजिस्टिक सपोर्ट ऑपरेशन की क्षमता पहले से 4 गुना बढ़ जाएगी. भारी भरकम हथियार उपकरणों को अब सड़क मार्ग के बजाय सीधा कारगिल तक C-17 के जरिए पहुंचाया जा सकेगा. इससे समय की बचत होगी.
अभी तक इस एयरफील्ड से An-32 और C-130J को ऑपरेट किया जाता रहा है. An-32 की लोड कैपेसिटी 3 से 4 टन के करीब है. C-130 J सुपर हर्क्यूलिस की क्षमता 6 से 7 टन की है. C-17 ग्लोबमास्टर अकेले ही इन दोनों से 3-4 गुना ज्यादा लोड उठा सकता है. सर्दियों में इससे 30 से 35 टन लोड और गर्मियों में 20 से 25 टन लोड आसानी से कारगिल में उतारा जा सकेगा.
एक बार में 180 से ज्यादा सैनिकों को उनके साजो-सामान के साथ आसानी से वॉर फ्रंट में तैनात किया जा सकेगा. इस एयरक्राफ्ट से एयरलिफ्ट और एयरड्रॉप मिशन को भी अंजाम दिया जा सकेगा. अगर कभी चीन के साथ जंग हुई तो उसकी नजर लद्दाख के सभी एयरफील्ड को नुकसान पहुंचाने की जरूर होगी.
ऐसे में कारगिल के इस एयरफील्ड तक उसका पहुंच पाना संभव नहीं होगा। लिहाजा सेना का ऑपरेशन C-17 के जरिए कारगिल एयरफील्ड से जारी रखा जा सकेगा. हालांकि पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध के दौरान कारगिल एयरफील्ड को निशाना बनाया था क्योंकि यह LOC के बेहद करीब स्थित है.
चीन के साथ तनाव में खूब इस्तेमाल हुआ C-17..
2020 में चीन को सबक सिखाने के लिए भारतीय वायुसेना के ट्रांसपोर्ट विमानों का सबसे बड़ा हाथ था. उस वक्त चीन की सेना और सैन्य साजोसामान की मौजूदगी भारतीय सेना से कहीं ज्यादा थी.
चीन के बराबर यानी की मिरर डिप्लॉयमेंट करने के लिए भारतीय वायुसेना ने अपने ऑपरेशन को शुरू किया था. इतना बड़ा एयर ऑपरेशन बीस साल बाद यानी की कारगिल युद्ध के बाद हुआ.
ऑपरेशन मूवमेंट के तहत भारतीय वायुसेना ने अपने हैवी ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट के जरिए 330 BMP यानी की आर्मर्ड पर्सनल कैरियर व्हीकल, 90 टैंक और आर्टिलरी गन और 68 हजार से ज्यादा सैनिकों को कम समय में पूर्वी लद्दाख तक पहुंचाया था.
इसमें C-17 ग्लोबमास्टर, IL-76, C-130 J सुपर हर्क्यूलिस, AN-32 फिक्स्ड विंग के साथ-साथ हेलिकॉप्टर ने भी मोर्चा संभाल लिया था. हाई ऑल्टिट्यूड में ट्रांसपोर्ट ऑपरेशन के जरिए 9000 टन से ज्यादा लोड का मूवमेंट किया गया था.
इसमें बड़े भारी भरकम हथियारों और सैनिकों के अलावा राशन, एम्यूनिशन, हाई ऑल्टिट्यूड टेंट, स्पेशल क्लोथिंग, फ्यूल जैसे जरूरी सामानों को लगातार लेह और फॉरवर्ड एरिया में पहुंचाया जा रहा था. अब जरूरत पड़ने पर इसी तरह के ऑपरेशन पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल के इलाके से भी चलाए जा सकेंगे.
Edited by k.s thakur...





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