गोटमार मेला: एमपी में एक प्रेम कहानी की याद में शुरू हुई खूनी परंपरा, इस साल 600 लोग घायल...
छिंदवाड़ा। हर साल की तरह इस साल भी पांढुर्णा जिले में गोटमार मेला आयोजित किया गया। शासन प्रशासन के तमाम प्रयासों के बाद भी गोटमार मेले में पत्थरबाजी की परंपरा नहीं रोकी जा सकी। दोनों तरफ से हुई पत्थरबाजी में 600 लोग घायल हो गए, जबकि शासन के मुताबिक करीब 300 लोग ही घायल हुए हैं।
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गौरतलब है कि बीते सालों इस खूनी खेल में 12 लोगों की जान भी जा चुकी है। कई लोग आजीवन दिव्यांग हो चुके हैं। किसी के हाथ-पैर टूट गए हैं, तो किसी की आंखे चली गईं। मानवाधिकार संगठन भी इस खूनी मेले को बंद करने की मांग कर चुके हैं। मेले में 4 स्वास्थ्य शिविर भी लगाए गए। 11 लोगों का एक्सरे किया गया। इनमें 3 लोगों के हाथ-पैर की हड्डी टूटी मिली। सभी का सिविल अस्पताल में इलाज किया जा रहा है।
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बुधवार को जाम नदी की पुलिया पर पांढुर्णा और सावरगांव के लोग एक-दूसरे पर पत्थरों की बौछार करते रहे। एक युवक पत्थर से बचने के लिए क्रिकेट किट पहनकर पहुंचा। ये खेल शाम तक चला। मेले में 6 जिलों का पुलिस बल तैनात रहा। बीते 300 सालों से परंपरागत रूप से मेले आयोजन हो रहा है।
इसमें सांवरगांव और पांढुर्णा पक्ष के लोग एक दूसरे पर पत्थरबाजी करते हैं। विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेला हर साल भाद्र पक्ष की अमावस्या की तिथि पर आयोजित होता है। पांढुर्णा के जाम नदी के दोनों ओर से लोगों के बीच खेले जाने वाले इस खूनी खेल को लेकर कई किवदंतियां हैं। इसके पीछे एक प्रेम कहानी भी जुड़ी हुई है।
आखिर क्यों मनाया जाता है गोटमार मेला ..
बताया जाता है कि पांढुर्णा का लड़का और नदी के दूसरी तरफ सावरगांव की लड़की से प्यार करता था। दोनों के इस प्रेम प्रसंग को विवाह बंधन में बदलने के लिए कन्या पक्ष के लोग राजी नहीं हुए, तो युवक ने अपनी प्रेमिका को जीवनसाथी बनाने के लिए सावरगांव से भगाकर पांढुर्णा लाने की कोशिश की।
इस दौरान सावरगांव वालों को यह बात मालूम पड़ गई। उन्होंने इसे अपनी प्रतिष्ठा पर आघात समझ लिया। रास्ते में जाम नदी को दोनों पार कर रहे थे, तो सावरगांव वालों ने लड़के पर पत्थरों की बौछार कर दी। लड़के के पक्ष वालों को यह खबर लगी, तो उन्होंने भी लड़के के बचाव के लिए पत्थरों की बौछार शुरू कर दी।
पांढुर्णा पक्ष और सावरगांव पक्ष के बीच पत्थरों की बौछारों से दोनों प्रेमियों की मृत्यु जाम नदी के बीच हो गई थी। इन दोनों प्रेमियों के शव को उठाकर मां चंडिका के दरबार में ले जाकर रखा गया। पूजा अर्चन करने के बाद अंतिम संस्कार किया गया था। इसी घटना की याद में मां चंडीका की पूजा अर्चना कर गोटमार मेले को मनाया जाता है। कई वर्षों से यह परंपरा निरंतर चली आ रही है।
पेड़ पर लगे झंडे को पाने वाली पक्ष की होती है जीत ..
मेले के दौरान आराध्य देवी मां चंडिका के पूजन के बाद जाम नदी के बीचों-बीच पलाश का पेड़ और झंडा गाड़ा जाता है। उसके बाद एक ओर से पांढुर्णा के लोग और दूसरी ओर से सावरगांव के लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं, जिसमें कई लोग इस पत्थरबाजी में घायल होते हैं। इस दौरान झंडा प्राप्त करने वाले को विजेता घोषित किया जाता है।
Courtesy : naidunia
Edited by k.s thakur...




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